गरुण पुराण का रहस्य :
मृत्यु के बाद आत्मा
13 दिन तक घर में क्यों रहती है ?
गरुण पुराण का रहस्य : मृत्यु के बाद आत्मा 13 दिन तक घर
में क्यों रहती है?
एक बार की बात है, प्रभु श्री राम और माता सीता चित्रकूट
धाम में विहार कर रहे थे। शांत और पवित्र वातावरण में दोनों विश्राम कर रहे थे। तभी
माता सीता के मन में एक अत्यंत जिज्ञासु प्रश्न उदित हुआ। वे विनम्रता से प्रभु श्री
राम से पूछ बैठीं — “नाथ, क्या मैं आपसे एक प्रश्न पूछ सकती हूं?”
भगवान श्री राम मुस्कुराते हुए बोले — “देवी, आपके मन में
जो भी प्रश्न हो, निसंकोच पूछिए।”
माता सीता ने कहा — “प्रभु, मैं जानना चाहती हूं कि जब किसी
प्राणी की मृत्यु हो जाती है, तो ऐसा क्यों कहा जाता है कि उसकी आत्मा 13 दिनों तक
अपने घर और इस संसार में बनी रहती है? क्या यह सत्य है? यदि हां, तो ऐसा क्यों होता
है? वह आत्मा इन दिनों में क्या अनुभव करती है? क्या वह अपने स्नेही जनों को देख सकती
है?”
श्री राम गंभीर हो गए। उन्होंने कहा — “हे जानकी, आपने जो
प्रश्न पूछा है वह केवल आपका नहीं है, यह प्रश्न समस्त संसार को मार्गदर्शन देने वाला
है। इस विषय को जानना सभी के लिए आवश्यक है, क्योंकि जीवन और मृत्यु के रहस्य से अनभिज्ञ
रहना अज्ञान के अंधकार में भटकने जैसा है। मैं इस रहस्य को आपसे अवश्य साझा करूंगा।”
कहा जाता है कि मृत्यु के 24 घंटे बाद आत्मा अपने घर वापस
आती है। वह अपने परिवार, प्रियजनों और उन स्थानों को देखने लौटती है जहाँ उसने अपना
जीवन व्यतीत किया। परंतु क्यों? क्या उसे अपनी मृत्यु का आभास होता है? क्या वह अपने
परिवार के दुख और विलाप को महसूस कर सकती है?
यह रहस्य स्वयं यमराज ने एक बार देवर्षि नारद को बताया था।
यमराज और नारद संवाद
एक बार यमलोक में यमराज अपने सिंहासन पर विराजमान थे। तभी
देवर्षि नारद अपने दिव्य वीणा के साथ वहाँ पहुँचे। प्रणाम कर उन्होंने कहा — “प्रभु,
मैं पृथ्वी लोक का भ्रमण कर रहा था और वहाँ एक विचित्र दृश्य देखा जिसने मेरे मन में
कई प्रश्न उत्पन्न कर दिए।”
यमराज ने पूछा — “कौन से प्रश्न देवर्षि?”
नारद बोले — “हे धर्मराज, मैंने देखा कि एक वृद्ध पुरुष की
मृत्यु हो गई। उसका परिवार शोक में डूबा हुआ था, और वे तरह-तरह के उपाय कर रहे थे ताकि
आत्मा पुनः लौट आए। तब मेरे मन में यह प्रश्न उठा — क्या मृत्यु के 24 घंटे बाद आत्मा
वास्तव में घर लौटती है? और क्या मृत्यु के बाद आत्मा का 13 दिनों का सफर वास्तविक
है?”
यमराज बोले — “देवर्षि, यह एक गंभीर प्रश्न है। इसका उत्तर
प्रत्येक मनुष्य को अवश्य जानना चाहिए।”
आलोक की कथा
कई वर्ष पहले एक गांव में आलोक नाम का युवक रहता था। वह धार्मिक
प्रवृत्ति का था और अपने पिता, पत्नी तथा बच्चे के साथ जीवन व्यतीत करता था। एक दिन
उसके पिता का देहांत हो गया। इस घटना ने उसे झकझोर दिया और उसके मन में मृत्यु और आत्मा
से जुड़े अनेक प्रश्न उठने लगे।
वह उत्तर खोजने के लिए एक आध्यात्मिक यात्रा पर निकला। एक
आश्रम पहुँचा जहाँ एक संत ध्यान मग्न थे। आलोक ने उनसे पूछा — “गुरुदेव, मृत्यु के
बाद आत्मा का क्या होता है?”
संत बोले — “वत्स, यदि तुम इस रहस्य को जानना चाहते हो तो
तुम्हें जंगल में और आगे बढ़ना होगा। वहाँ तुम्हें अपने प्रश्नों के उत्तर मिलेंगे।”
पहला पड़ाव — पीपल का वृक्ष
जंगल में आलोक को एक विशाल पीपल का वृक्ष मिला जो मानवीय
स्वर में बोल रहा था। वृक्ष ने कहा — “वत्स, यदि तुम मृत्यु का रहस्य जानना चाहते हो
तो मेरी पहेली का उत्तर दो: जब जीवित होता हूं तो काला होता हूं, मरने के बाद लाल,
और जितना जलाओ उतना बिखरता हूं। बताओ मैं कौन हूं?”
आलोक ने उत्तर दिया — “कोयला।”
वृक्ष प्रसन्न हुआ और बोला — “सत्य कहा, वत्स। अब सुनो —
मृत्यु के पहले 24 घंटे आत्मा भ्रम की स्थिति में रहती है। उसे समझ नहीं आता कि वह
देह से मुक्त हो गई है। आत्मा अपने मृत शरीर को, परिवार के रोदन को देखती है पर कोई
उसे सुन नहीं सकता। यही उसकी सबसे बड़ी पीड़ा होती है। धीरे-धीरे उसे अपने कर्मों और
वास्तविकता का आभास होता है।”
दूसरा पड़ाव — सुगम कौवा
फिर आलोक की भेंट एक दिव्य कौवे से हुई। कौवे ने पूछा —
“बताओ, मनुष्य का सबसे बड़ा बंधन क्या है?”
आलोक बोला — “मोह।”
कौवे ने कहा — “सत्य। आत्मा मृत्यु के 24 घंटे बाद अपने मोह
में बंधकर घर लौटती है। उसे लगता है कि वह अपने परिवार को सांत्वना दे सकती है, परंतु
कोई उसकी उपस्थिति नहीं जान पाता। यही स्थिति आत्मा के लिए सबसे अधिक कष्टकारी होती
है। इसलिए गीता-पाठ और पिंडदान से आत्मा को शांति और मुक्ति की राह मिलती है।”
तीसरा पड़ाव — गौ माता का ज्ञान
जंगल के तीसरे चरण में आलोक को दिव्य प्रकाश से युक्त गौ
माता मिलीं। उन्होंने पूछा — “बताओ, मनुष्य की सबसे बड़ी संपत्ति क्या है जो मृत्यु
के बाद भी साथ जाती है?”
आलोक ने उत्तर दिया — “कर्म।”
गौ माता बोलीं — “सत्य कहा, वत्स। जब आत्मा मोह से मुक्त
होती है, तब उसे अपने कर्मों का प्रतिफल दिखाई देता है। अच्छे कर्म उसे स्वर्ग की ओर
और बुरे कर्म यमलोक की ओर ले जाते हैं। जब तक मनुष्य जीवित है, तब तक वह अपने कर्मों
को सुधार सकता है। मृत्यु के बाद वही फल भोगना पड़ता है जो उसने अर्जित किया हो।”
अंतिम पड़ाव — वैतरणी नदी
अंततः आलोक एक दिव्य नदी के तट पर पहुँचा जहाँ एक देवी प्रकट
हुईं। उन्होंने पूछा — “मनुष्य का सबसे बड़ा भ्रम क्या है?”
आलोक ने उत्तर दिया — “यह कि संसार और शरीर स्थायी हैं।”
देवी प्रसन्न हुईं और बोलीं — “वत्स, यह वैतरणी नदी है जो
यमलोक और पितृलोक के बीच बहती है। जो पुण्यात्मा हैं, उनके लिए यह जल निर्मल और ठंडा
होता है। परंतु जिनके जीवन में पाप हैं, उनके लिए यह नदी अग्नि और रक्त से भरी प्रतीत
होती है। आत्मा के लिए यही अंतिम परीक्षा होती है।”
उन्होंने आगे कहा — “जो शुभ कर्म करते हैं, गौ सेवा, दान
और धर्म का पालन करते हैं, उनके लिए यह नदी सरल मार्ग बन जाती है। किन्तु अधर्मी आत्माएं
इसमें फंस जाती हैं और तब तक कष्ट भोगती हैं जब तक उनके पाप नष्ट न हो जाएं।”
निष्कर्ष
यह कथा सुनाकर यमराज ने नारद जी से कहा — “देवर्षि, यही कारण
है कि आत्मा मृत्यु के बाद 13 दिनों तक पृथ्वी लोक में रहती है। पहले दिन मोह, फिर
कर्म और अंत में निर्णय की यह यात्रा चलती है।”
नारद जी ने आदरपूर्वक कहा — “प्रभु, अब मुझे मृत्यु और आत्मा
के रहस्यों का बोध हो गया है। मैं इस ज्ञान का प्रचार करूंगा ताकि लोग धर्म के मार्ग
पर चल सकें।”
यमराज ने आशीर्वाद देकर कहा — “जो मनुष्य इस सत्य को समझ
लेता है, वह मोह-माया से मुक्त होकर मोक्ष की ओर अग्रसर होता है।”
प्रेम से बोलिए — जय श्री हरि विष्णु।