मेघनाथ की मृत्यु के बाद पत्नी सुलोचना का क्या हुआ

Deepak Sir

मेघनाथ की मृत्यु के बाद पत्नी सुलोचना का क्या हुआ

मेघनाथ की मृत्यु के बाद पत्नी सुलोचना का क्या हुआ

यह कथा त्रेतायुग की परम पतिव्रता नारी सुलोचना की है, जो वासुकी नाग की पुत्री और लंका के राजा रावण के पराक्रमी पुत्र मेघनाथ की पत्नी थीं। लक्ष्मण के साथ हुए भयंकर युद्ध में मेघनाथ का वध हुआ। युद्ध के बाद उसका कटा हुआ मस्तक भगवान श्रीराम के शिविर में लाया गया। जब सुलोचना को अपने पति की मृत्यु का समाचार मिला, तो उसने रावण से मेघनाथ का शीष लाने की प्रार्थना की, परंतु रावण ने मना कर दिया। उसने कहा कि सुलोचना स्वयं ही श्रीराम के पास जाकर शीष ले आए, क्योंकि श्रीराम पुरुषोत्तम हैं और उनके पास जाने में उसे किसी भय की आवश्यकता नहीं है। 

जब लक्ष्मण युद्धभूमि में मेघनाथ से युद्ध करने के लिए जा रहे थे, तब श्रीराम ने उनसे कहा कि वे मेघनाथ का वध अवश्य करेंगे, परंतु एक बात का ध्यान रखें कि मेघनाथ का मस्तक भूमि पर न गिरे। श्रीराम ने बताया कि मेघनाथ नारी-व्रत का पालक था और उसकी पत्नी परम पतिव्रता है। ऐसी साध्वी के पति का सिर यदि भूमि पर गिर पड़ा, तो हमारे समस्त प्रयास व्यर्थ हो जाएंगे। लक्ष्मण ने युद्ध में मेघनाथ का मस्तक काटा, पर उसे पृथ्वी पर नहीं गिरने दिया। हनुमान वह मस्तक श्रीराम के पास ले आए। 

उधर, युद्धभूमि से उड़ी मेघनाथ की दाहिनी भुजा सुलोचना के पास आ गिरी। सुलोचना पहले चकित हुई, फिर दुख से व्याकुल होकर रोने लगी। उसने सोचा कि यदि यह भुजा उसके पति की हुई, तो वह उसके पतिव्रत की शक्ति से युद्ध का सारा वृत्तांत लिख दे। भुजा ने दासी की दी हुई लेखनी से स्वयं लिखा — कि वह मेघनाथ की ही भुजा है और लक्ष्मण ने उसका वध किया है। यह देखकर सुलोचना का हृदय व्यथित हो उठा। 

रावण ने आकर सुलोचना को सांत्वना दी और कहा कि वह सहस्त्र मस्तक काटकर पृथ्वी पर गिरा देगा। पर सुलोचना ने उत्तर दिया कि हजारों सिर भी मेरे पति के शीष की कमी पूरी नहीं कर सकते। उसने निश्चय किया कि अब वह सती होगी। पति का शव रामदल में था, इसलिए उसने रावण से शव मंगाने का आग्रह किया। रावण ने कहा कि वह स्वयं जाकर श्रीराम से शव प्राप्त करे, क्योंकि वहाँ धर्मात्मा पुरुष हैं, जिनसे उसे कोई भय नहीं होना चाहिए। 

श्रीराम को जब सुलोचना के आगमन का समाचार मिला, तो वे स्वयं जाकर उसका स्वागत करने आए। उन्होंने कहा कि उसके पति विश्व के महान योद्धा थे, पर विधि की लेखनी कौन बदल सकता है। श्रीराम की विनम्रता देखकर सुलोचना ने उनकी स्तुति की, पर श्रीराम ने कहा कि वह मुझे लज्जित न करे, क्योंकि वह स्वयं पतिव्रता की मूर्ति है। 

सुलोचना ने अश्रुपूरित नेत्रों से कहा कि वह अपने पति का मस्तक लेने आई है ताकि सती हो सके। श्रीराम ने तुरंत मेघनाथ का मस्तक मंगवाया और उसे सुलोचना को दे दिया। पति का चेहरा देखते ही वह बिलख उठी। उसने लक्ष्मण की ओर देखकर कहा कि वे गर्व न करें, क्योंकि यह विजय उनके पराक्रम से नहीं, दो पतिव्रत नारियों के भाग्य से हुई है — उनकी पत्नी भी पतिव्रता है और मैं भी। किंतु मेरे पति अपने पिता के अधर्म के कारण पतित हुए। 

सुग्रीव ने आश्चर्य से पूछा कि उसे यह कैसे पता चला कि मेघनाथ का सिर श्रीराम के पास है। सुलोचना ने उत्तर दिया कि उसके पति की भुजा उड़कर उसके पास आई थी और उसने स्वयं लिखकर यह सूचना दी थी। सुग्रीव ने व्यंग्य में कहा कि यदि भुजा लिख सकती है, तो सिर भी हंस सकता है। श्रीराम ने कहा कि पतिव्रता की शक्ति अपार है। 

सुलोचना ने कहा कि यदि वह मन, वचन और कर्म से अपने पति की उपासिका है, तो यह मस्तक अवश्य हंसेगा। यह कहते ही मेघनाथ का कटा मस्तक हंस उठा। यह देखकर सभी विस्मित रह गए और उसकी पतिव्रता की महिमा को प्रणाम किया। 

चलते समय सुलोचना ने श्रीराम से प्रार्थना की कि उसके पति की अंत्येष्टि क्रिया होनी है और वह सती होने जा रही है, अतः उस दिन युद्ध न किया जाए। श्रीराम ने उसकी प्रार्थना स्वीकार कर ली। सुलोचना अपने पति का सिर लेकर लंका पहुंची। समुद्र तट पर चंदन की चिता तैयार की गई। उसने पति का शीष गोद में रखा, चिता पर बैठी, और अग्नि में प्रवेश कर सती हो गई।

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